Bharat Ka Swadeshi Abhiyaan

दोस्तों ,
करोना वायरस से त्रस्त दुनिया के  सभी देश  अभूतपूर्व समस्याओं का वरण करने को मजबूर है। समस्या इतनी विकट है की इसका समाधान सामूहिक रूप  से भी निकाल  पाने में सक्षम नहीं दिख रहे है।दुनिया की बड़ी आर्थिक और सैन्य शक्तियो से लैस देश भी उतने ही मजबूर और असहाय हो गए है जितने अपेक्षाकृत छोटे और कमजोर देश। बड़े बड़े वैज्ञानिक ,इंजीनियर और डॉक्टर्स अपने स्तर पर पूरी शांति के साथ मुकाबला कर रहे है लेकिन तीन चार महीने बीत जाने के बाद भी रौशनी की कोई किरण अभी भी नजर नहीं आ रही है। सभी देश अपनी परिस्थितयों और योग्यता अनुसार अकेले और सामूहिक रूप से स्थितियों  का मुकाबला  करने के लिए योजनाए बना रहे है।  भारत की गिनती दुनिया के बड़े और सक्षम देशो में की जाती है। मोदी जी के प्रधान मंत्री बनने के बाद ब्रांड इंडिया और मजबूत हुआ है। करोना जैसी विपत्ति से कुशलता पूर्वक निपटने के लिए दुनिया भर के बड़े देश और उनका नेतृत्व करने वाले लोग मोदी जी की तरफ आशा भरी नजरो से देख रहे है। इसलिए भारत की जिम्मेदारी और बढ़ गयी है। 
अब भारत के सामने दोहरी जिम्मेदारी है पहली अपने घर को ठीक रखना उनका उचित समाधान निकालना और दुनिया के दूसरे देशो को यथा सम्भव सहायता और मार्ग दर्शन करना। इस में कोई शक नहीं की पिछले पचास -साठ दिनों में करोना को फैलने से रोकना और संक्रमित हुए लोगो का उपचार करने में देश ने अद्भुत क्षमताओँ का प्रदर्शन किया है। देश के नेतृत्व को इसके लिए जितनी बधाई दी जाये कम है। पचास दिनों की देश बंदी से उत्पन्न हुई परिस्थितियों से निपटने का समय प्रारम्भ हो गया है। अलग अलग कार्यक्षेत्र की समस्याएं अलग अलग है और उनके समाधान भी। सरकार इनसे निपटने के लिए भगीरथ प्रयास कर रही है। और हम लोगो को  विश्वास  है की हम इसे विजयी होकर निकलेंगे। मोदी जी के नेतृत्व की अनेक विशेषताएं है। इसमें एक है छोटी छोटी समस्याओं से निपटने के लिए जनता का मन तैयार करना। क्योंकि सरकार के प्रयासों में जनता की भागीदारी सुनिश्चित होने पर ही अपेक्षित परिणाम निकलते है। इसका एक उदाहरण है देश को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने का अभियान  और दूसरा स्वछता अभियान। मोदी जी के आह्वान पर जनता के सभी वर्गों की सक्रिय  भागीदारी  अभियान की सफलता निश्चित करती है। 
करोना महामारी से उत्पन्न आर्थिक परिस्थितियों से निपटने के लिए भारत सरकार की और से बीस  लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का ऐलान कर दिया गया है जिससे मजदूर ,छोटे बड़े उद्यमी तथा समाज के अन्य वर्गों को आगे की राह बनाने में मदद मिलेगी। इस पैकेज  के  साथ ही मोदी जी ने जनता को स्वदेशी उत्पादों का अधिकाधिक उपयोग करने और इसका प्रचार कर सभी को प्रोत्साहित करने का आह्वान किया है। मेरा विश्वास है की यदि समाज के सभी स्टेक होल्डर अपनी जिम्मेदारिओं को ईमानदारी से निभाए तो देश आने वाले कुछ वर्षो में स्वदेशी अपना कर आत्मनिर्भर बन सकता है। 
इस आह्वान की सफलता के लिये देश में हुए   स्वदेशी आंदोलनों का इतिहास जानना जरुरी है। इसके सफलता पूर्वक कार्यान्वन में आने वाली दिक्कतों को जानकर उनका समाधान निकलने से ही इस अभियान में सफलता मिल सकेगी। दरअसल जनता से स्वदेशी अपनाने का आह्वान करने वाले मोदी जी पहले नेता नहीं है। देश में स्वदेशी आंदोलन के पांच चरण हुए है। पहला 1850 -1905  जिसका नेतृत्व दादा भाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले एवं एक नाथ राना डे इत्यादि ने किया।स्वदेशी आंदोलन का  दूसरा चरण 1905  -1917 में बंगाल विभाजन के विरोध में चला। इसका  नेतृत्व सुरेंद्र नाथ बनर्जी तथा के के मित्रा जी ने किया था। इस आंदोलन में मैंचेस्टर के बने कपड़ो और लिवरपूल के नमक का बहिष्कार किया गया। इस आंदोलन का प्रभाव केवल बंगाल में  था और यह जन  आंदोलन न बन सका।
स्वदेशी आंदोलन का तीसरा चरण शुरू हुआ गाँधी जी के नेतृत्व में 1917 में शुरू हुआ और 1947 में  आजादी मिलने  तक चलता रहा।  आंदोलन का तीसरा चरण जन  आंदोलन बना और बहुत ही प्रभावशाली रहा।इस आंदोलन में किसान,जमींदार ,नवाब  और आम  जनता सभी ने दिल खोल कर भाग लिया।  विदेशी सामान खास कर कपड़ो की होली देश भर में जलाई गयी। विदेशी वस्त्रो के बहिष्कार कर  घर -घर सूत कात  कर अपने हाथो से बने वस्त्र पहनने की परम्परा शुरू हो गई। इस आंदोलन के नेतृत्व कर्ता महात्मा गाँधी ने स्वयं  खादी पहनी और अपने जीवन में केवल स्वदेशी वस्तुएँ इस्तेमाल की।  इसलिए स्वदेशी आंदोलन ने आजादी दिलवाने में  बड़ा महत्वपूर्ण   योगदान किया। 
1947 में आजादी मिलने के बाद  इस  आंदोलन का चौथा चरण शुरू हुआ जो 1948  से 1991 तक चला।  इस आंदोलन की आड़ में देश में  लाइसेंस परमिट राज  की शुरुवात हो गयी और निहित स्वार्थी  व्यापारी और नेताओ  ने इसका खूब फायदा उठा कर आम आदमी को बड़े संकट में डाल दिया था।  हर तरह के सामान की उपलब्धता समस्या बन गयी और साबुन , चीनी, सीमेंट सब कालाबाजारी के साधन बन गए।स्कूटर जैसी चीजों को खरीदने के लिए पांच से दस साल तक का इंतजार करवाया जाता रहा। एक  टेलीफोन लगवाने के लिए 3  से 5 साल का समय लगता था।और यह सब कुछ काला  बाजार में बड़ी आसानी से उपलब्ध करवा दिया जाता था।    इस तरह देश की सीधी सादी जनता की भावनाओं का न केवल मजाक बनाया गया बल्कि इसकी आड़ में जनता का आर्थिक दोहन भी लम्बे समय तक किया गया।  
पी वी नरसिंघा राव जब  1992 में प्रधान मंत्री बने तब शुरू हुआ स्वदेशी आंदोलन का पाँचवा चरण।  इस दौरान दुनिया भर में तेजी से राजनैतिक परिवर्तन हुए जैसे यू एस एस आर का टूट कर 15 छोटे छोटे देशों में विभाजन हुआ ।  बर्लिन की दीवार का टूट कर पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी का विलय  हो गया।   माना जाना चाहिए की आंदोलन का अभी पांचवा चरण चल रहा है। यदि सबकुछ ठीक रहा तो 2020 में इस आंदोलन का छठा चरण शुरू हो सकता है। 

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